Sunday, February 19, 2012

वाह ताज नहीं कहो, आह ! ताज ...

वैसे तो ताजनगरी आगरा में कई दफा आ चुका हूं और हर बार एक अच्छा माहौल और अनुभव के साथ वापस लौटा हूं, लेकिन इस बार ताजमहल पहुंचा तो सच में काफी तकलीफ हुई। पहले तो इस बार यहां वैसे ही कुछ खालीपन सा था, लग रहा था कि कुछ चीज भूल आया हूं, इससे ही मन दुखी था, फिर यहां विदेशियों और भारतीयों के बीच होने वाले भेदभाव से लगा कि अब यहां कभी नहीं आना चाहिए।

विदेशी पर्यटकों के मुकाबले भारतीयों को यहां का टिकट सस्ते में मिलता है। इसका मतलब ये तो नहीं कि भारतीयों को आप दोयम दर्जे का मानने लगेगें। लेकिन यहां ऐसा ही है। भारतीयों के लिए यहां टिकट 25 रुपये में मिलता है, जबकि विदेशियों को ये टिकट 750 रुपये में खरीदना होता है। बस यहीं से शुरु हो जाता है भेदभाव। देश के लोगों के साथ यहां तैनात कर्मचारियों का व्यवहार भी ठीक नहीं होता है। विदेशियों की सुरक्षा जांच जहां होती है, उसके लिए अलग रास्ता बनाया गया है, जहां लिखा है हाई वैल्यू टिकट । इनकी जांच महज खाना पूरी होती है, जबकि भारतीयों की जांच जहां होती है, उन्हें बहुत ही बारीकी से जांचा जाता है। विदेशियों की जांच महज खानापूरी है।

आप आगे बढ़ेगें ताज महल की ओर तो विदेशियों के लिए छोटा रास्ता है, वो सीधे ताजमहल तक चले जाते हैं, हमें आपको एक लंबी लाइन में दूसरे रास्ते से घूम कर जाना होता है। ताजमहल के बारामदे में जाने के लिए विदेशियों को तो जूते पहन कर जाने की इजाजत दे दी जाती है, वो जूते के ऊपर एक प्लास्टिक का कवर कर लेते हैं, लेकिन यह सुविधा भारतीयों के लिए नहीं है। सुरक्षा के नाम पर जगह जगह इतनी टोका टोकी भारतीयों के साथ की जाती है कि भूल जाते हैं कि हम यहां वो ताज महल देखने आए हैं जो दुनिया मे मोहब्बत की निशानी है। यहां मकबरे के भीतर की तस्वीरें खींचने के मनाही है, विदेशी तस्वीरें लेते रहते हैं, यहां तैनात सुरक्षाकर्मी मूकदर्शक बने रहते हैं, लेकिन किसी भारतीय ने ये कोशिश की तो उसके साथ अभद्रता की जाती है।

मित्रों यहां हमारे तमाम जर्नलिस्ट साथी हैं, मुझे तो कोई तकलीफ नहीं हुई, लेकिन भारतीयों के साथ भेदभाव देखकर मैं हैरान हूं, और मुझे तो अफसोस हो रहा है कि अपने ही देश में आखिर हम भारतीयों के साथ ऐसा व्यवहार कर दुनिया में क्या संदेश दे रहे हैं। अभी तो मैं चुनावी सफर में हूं, पर इस मामले में तो मैं जरूर आगरा प्रशासन की ऐसी तैसी करने का मन बना चुका हूं, बस जरा मैं खाली हो जाऊं। हम गोरे काले में भेद नहीं करते हैं, पर यहां तो साफ दिखाई देता है, और तो छोड़िए यहां भिखारी भी गोरों से भीख मांगते हैं, कालों की ओर वो भी नहीं ताकते। मित्रों जब यहां आता हूं तो मुझे वो गाना याद आता है कि  इक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल, दुनिया वालों को मोहब्बत की निशानी दी है...। पर अब इस गाने के मायने बदल गए हैं, इस ताज महल से जितनी मुश्किलें हैं वो हमारे लिए हैं, जितना शुकून है वो विदेशियों के लिए है।   



3 comments:

  1. ji ye peeda to har aam nagrik ki aur lagbhag har etihasik darshaniy sthal ki hai...mujhe to lagta hai jitana bhedbhav angrejon ke man me tha usse kahin jyada ham bhartiyon ke man me hai kali chamadi ke liye...aap jaroor awaz uthaye aur har bhukt bhogi aapki awaz me apni awaz milaye nahi to ham hamre desh me hi doyam darje ke ho jayenge.

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  2. ताजमहल के बाहर भी जरा निकलकर देखिए गंदगी का अंबार दिखेगा। वैसे विदेशियों को प्रमुखता देने की प्रथा आपको भारत मे हर जगह मिल जायेगी।
    www.rajnishonline.blogspot.com

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