Friday, June 15, 2012

राष्ट्रपति पद की आड़ में बंगालियों की जंग ....

दिल्ली में महाभारत तो महामहिम के लिए हो रही है. यानि यहां नए राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा है। पर पूरे दिन टीवी चैनलों पर जो तस्वीर दिखाई दे रही है, उससे लगता है कि यहां प्रणव मुखर्जी और ममता बनर्जी के बीच कोई लड़ाई चल रही है। पूरा चुनाव प्रणव वर्सेज ममता दिखाई दे रहा है।
बंगाल के दो महत्वपूर्ण इस कदर एक दूसरे के विरोधी कैसे हो गए, ये बात किसी के भी समझ में नहीं आ रही है। कुछ दिन पहले ही ममता की आत्मकथा ‘माई अनफ़ॉरगेटेबल मेमॅरीज’ प्रकाशित हुई है, इसमें ममता ने प्रणव मुखर्जी को अपना बड़ा भाई बताया है और कहा कि वो उनका बहुत आदर करतीं हैं। इस किताब में उन्होंने स्व. राजीव गांधी की भी खुल कर तारीफ की है। एक ओर राजीव गांधी की प्रशंसा दूसरी ओर सोनिया गांधी की बात को नकारना, प्रणव को बड़ा भाई बताना और उन्हीं के रास्ते में कांटे बोना। ये सब क्या हो रहा है, आसानी से किसी के समझ में नहीं आ रहा है।
वैसे भी ममता जब भी केंद्र सरकार से नाराज होती हैं, तो प्रणव मुखर्जी ही उन्हें मनाते रहे हैं। उनके बीच बचाव के बाद ही रास्ता निकलता रहा है। आखिर ऐसा क्या हो गया कि प्रणव एक दम से ममता की आंखों के किरकिरी बन गए। अंदर से जो बात छन कर बाहर आ रही है, उससे लगता है कि पूरी ममता समर्थन का कीमत मांग रही हैं। कीमत भी ऐसी जो देना संभव नहीं है। ये सही बात है कि पश्चिम बंगाल में वामपंथियों ने तमाम तरह के कर्जे ले रखें हैं और बंगाल को सालाना 21 हजार करोड़ रुपये सिर्फ ब्याज का भुगतान करना पड़ रहा है। ममता तीन साल के लिए ब्याज का भुगतान बंद कराना चाहती हैं। इसके अलावा एक स्पेशल पैकेज की मांग भी है। बंगाल को दिया गया तो यही पैकेज यूपी को भी देना होगा। 
प्रणव दादा की राजनीति में ऐसा कुछ नहीं कर सकते, जिससे उन पर ये इल्जाम लगे कि राष्ट्रपति बनने के लिए उन्होंने सरकारी खजाने का इस्तेमाल किया। लगता है कि मुखर्जी ने साफ मना कर दिया कि समर्थन के एवज में जो मांग की जा रही है, वो पूरी नहीं हो सकती। ऐसे में ममता जो कर रही हैं, उसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं।

चलते - चलते
हाहाहहाहाहहा टीएमसी नेता पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को भी मौका मिल गया ममता को गठबंधन धर्म समझाने का। ममता के जले पर नमक छिड़कते हुए श्री त्रिवेदी ने कहा कि ममता ने गठबंधन की मर्यादा को तोड़ा है। यूपीए सरकार में शामिल होने के बाद भी जिस तरह वो अपना अलग राग अलाप रही हैं, वो ठीक नहीं है। कहते है ना कि जब दिन खराब होता है तो आप हाथी पर बैठे रहे फिर भी कुत्ता काट लेता है। कुछ ऐसा ही इस समय ममता के साथ है। कल जो लोग सामने खड़े नहीं हो पाते थे, वो आज ममता को मर्यादा का पाठ पढ़ा रहे हैं।  
  

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