Tuesday, August 20, 2013

रिटायर होकर आराम करने आया है टुंडा !

मुझे देश में बढ़ रहे आतंकवाद के बारे में तो अच्छी जानकारी है, लेकिन आतंकवादियों इनके ठिकाने, इनके संगठन के बारे में बस सुनी सुनाई बातें ही पता हैं। देख रहा हूं तीन चार दिन से एक सेवानिवृत्त आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा को लेकर दिल्ली पुलिस इधर उधर घूम रही है। हालाकि इसने अकेले ही पुलिस के पसीने छुड़ा दिए हैं। पुलिस उसे आतंकवाद की पांच घटनाओं में शामिल होने की बात करती है, टुंडा पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए दावा करता है कि वो पांच और यानि आतंकवाद की 10 घटनाओं में शामिल रहा है। खुद को अंडरवर्ल्ड डाँन दाउद इब्राहिम का सबसे करीबी भी बता रहा है। इतना ही नहीं खुद ही कह रहा है कि वो लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का बड़ा आतंकवादी है। पुलिस बहुत मेहनत से सवाल तैयार करती है, उसे लगता है कि टुंडा सही जवाब देने से हिचकेगा, लेकिन वो पुलिस को बिल्कुल निराश नहीं कर रहा है, आगे बढ़कर अपने अपराध कुबूलता जा रहा है। जानते हैं टुंडा खाने पीने का भी काफी शौकीन है, वो खाने में सिर्फ ये नहीं कहता है कि उसे बिरयानी चाहिए, बल्कि ये भी बताता है कि जामा मस्जिद की किस दुकान से बिरयानी मंगाई जाए। टुंडा के हाव भाव से साफ है कि वो यहां पुलिस से टांग तुडवाने नहीं बल्कि जेल में रहकर मुर्गे की टांग तोड़ने आया है।

सुना है कि भारत - नेपाल सीमा यानि उत्तराखंड के बनबसा से दिल्ली पुलिस ने इसे गिरफ्तार किया है। देखिये ये तो पुलिस का दावा है। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि टुंडा पुलिस के बिछाए जाल में फंसा है, मेरा तो मानना है कि पुलिस इसके जाल में फंसी है। अंदर की बात बताऊं ? टुंडा की जो तस्वीर पुलिस के रिकार्ड में है, उस तस्वीर से तो पुलिस सात जन्म में भी टुंडा को तलाश नहीं सकती थी। हो सकता है कि ये बात गलत हो, पर मेरा तो यही मानना है कि टुंडा ने खुद ही पुलिस को अपनी पहचान बताई है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं क्या कहता जा रहा हूं। भला टुंडा क्यों पुलिस के हत्थे चढ़ेगा ? उसे मरना है क्या कि वो दिल्ली पुलिस के पास आएगा ? हां मुझे तो यही लगता है कि वो बिल्कुल आएगा, क्योंकि इसकी ठोस वजह भी है। दरअसल टुंडा अब बूढा हो गया है और इस उम्र में वो पुलिस के साथ आंखमिचौनी नहीं खेल सकता। ऐसे मे हो सकता है कि आतंकवादी गैंग से ये रिटायर हो गया हो। साथियों ने उसे सलाह दी हो कि अब तुम्हे आराम की जरूरत है।

किसी आतंकवादी को आराम की जरूरत हो तो उसके लिए भारत की जेल से बढिया जगह भला कहां मिल सकती है। मुझे तो लगता है कि वो यहां पूरी तरह आराम करने के मूड में ही आया है। यही वजह है कि वो किसी भी मामले में अपना बचाव नहीं कर रहा है। आतंकवाद से जुड़ी जिस घटना के बारे में भी पुलिस उससे पूछताछ करती है, वो सभी अपने को शामिल बताता है। इतना ही देश के दूसरे राज्यों में भी हुई आतंकी घटनाओं में भी वो अपने को शामिल बताने से पीछे नहीं हटता। हालत ये है कि दिल्ली पुलिस से उसकी पूछताछ पूरी होगी, फिर उसे एक एक कर दूसरे राज्य की पुलिस रिमांड पर लेकर अपने यहां ले जाएगी। ऐसे में टुंडे का पर्यटन भी होता रहेगा। घूमने फिरने का टुंडा वैसे भी शौकीन है, अब सरकारी खर्चे पर उसे ये सुविधा मिलेगी, तो भला उसे क्या दिक्कत है। 

और हां, देश की पुलिस की कमजोरी ये टुंडा जानता है। यहां पुलिस प्रमोशन और पदक के लिए पागल रहती है। जाहिर है इतने बड़े आतंकी को पकडने वाली पुलिस टीम को प्रमोशन भी मिलेगा और पदक भी। इसलिए टुंडा पुलिस की हर बात बिना दबाव के खुद ही मान ले रहा है। उसे ये भी पता है कि  कोर्ट में उसका जितने साल मुकदमा चलेगा, उतनी तो उसकी उम्र भी नहीं बची है। अब टुंडा इतना बड़ा आतंकी है तो उसे कड़ी सुरक्षा में रखा भी जाएगा। टुंडा सुन चुका है कि यहां कसाब के रखरखाव पर मुंबई सरकार ने कई सौ करोड रुपये खर्च किए हैं। यहां तक की उसकी मौत के बाद उसके शव को कई महीने तक सुरक्षित रखा गया था। कसाब को उसकी मन पसंद का खाना मिलता था, अब इस उम्र में टुंडा और क्या चाहिए ? लेकिन टुंडा ने कुछ जल्दबाजी कर दी, अभी पुलिस की पूछताछ चल ही रही है कि उसने पुलिस से लजीज खाने की मांग रखनी शुरू कर दी। एक सलाह दे रहा हूं टुंडा, थोड़ा तसल्ली रखो, जेल में अच्छी सुविधा मिलेगी। अभी अगर बिरयानी वगैरह मांगने लगे तो आगे मुश्किल हो जाएगी।


Saturday, August 10, 2013

हार गया INCOME TAX विभाग से !



मुझे लगता है कि कई मेरी तरह आप भी अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट, बीमा एजेंट पर भरोसा कर लेते होंगे और सादे फार्म पर हस्ताक्षर करके उसे थमा देते होंगे। लेकिन इससे कैसी मुश्किल आती है, ये मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता होगा। मतलब एक छोटी सी गलती को दुरुस्त कराना इस सरकारी सिस्टम में कितना मुश्किल है, ये सुनकर आपके भी कान खड़े हो जाएंगे। गलती ये कि आयकर के PAN कार्ड के लिए मैने सात साल पहले जब आवेदन किया तो फार्म पर हमने हस्ताक्षर पहले कर दिया और मेरे आफिस के ही एकाउंट्स से जुड़े सहकर्मी ने मेरा फार्म भरा। उस बंदे ने पहले तो मेरा mail ID बिना मुझसे पूछे गलत भर दिया, जो अब ठीक हो चुका है। इसके अलावा मेरे नाम Mahendra Kumar Srivastava की स्पेलिंग गलत कर दी। मतलब मैं श्रीवास्तव की स्पेलिंग SRIVASTAVA लिखता हूं, उसने फार्म में SHRIVASTAVA लिख दिया। अंतर ये कि उसने बेवजह " H " शामिल  कर दिया, जो मैं नहीं लिखता हूं। 

अब इस गलत नाम से PAN कार्ड बनकर मेरे पास आ गया। इस एक H ने मेरा बाजा बजा दिया है। मैं किसी लोन के लिए अप्लाई करता हूं तो रिजेक्ट हो जाता है। आँनलाइन रिटर्न दाखिल करने में असुविधा होती है। बैंक में मेरे नाम और आयकर के PAN में नाम अलग अलग होने से तमाम Financial Process में मुश्किल हो रही है। आपको लग रहा होगा कि ये कौन सा मुश्किल काम है, इसे ठीक कराया जा सकता है। बिल्कुल सही कहा आपने, ये ठीक हो सकता है, लेकिन इसके लिए मैं हर संभव कोशिश कर चुका हूं, और कई बार इसकी फीस दे चुका हूं, पर मामला ज्यों का त्यों है। मेरे चार्टर्ड एकाउंटेंट ने मुझसे कहाकि आप अपने बैंक के डाक्यूमेंट्स दे दीजिए, नाम ठीक हो जाएगा। मैने दे दिए, आयकर अधिकारी इसे नहीं माना। कहा कि बैंक के कागजात  मान्य नहीं हैं।

मुझसे हाईस्कूल का प्रमाण पत्र मांगा गया। मैने हाईस्कूल का प्रमाण पत्र दिया, लेकिन 1980 में मैने हाईस्कूल यूपी बोर्ड से किया है, उस वक्त प्रमाण पत्र पर नाम हिंदी में लिखे होते थे। इसलिए आयकर विभाग ने इस प्रमाण पत्र को खारिज कर दिया। मैने इंटर मीडिएट का सर्टिफिकेट दिया तो कहाकि इंटरमीडिएट का सर्टिफिकेट मान्य नहीं है। कहा गया कि आप आप चुनाव आयोग के पहचान पत्र की फोटो कापी दीजिए। बिल्कुल सही, मैने अगले ही दिन चुनाव आयोग की कार्ड की फोटो कापी दे दी, लेकिन इसमें आप जानते ही हैं कि मतदाता सूची और इस निर्वाचन आयोग के पहचान पत्र में पूरा नाम लिखने की जैसे परंपरा ही नहीं है। इसलिए इस पहचान पत्र में सिर्फ महेन्द्र कुमार ही लिखा है। यहां भी श्रीवास्तव नहीं है। बात ड्राईविंग लाइसेंस की हुई, मेरे पास ड्राईविंग लाइसेंस भी है। लेकिन ये लाइसेंस मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) का बना हुआ है, इसमें भी नाम हिंदी में है।

केंद्र सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना है आधार कार्ड। इस आधार कार्ड मे मेरा नाम हिंदी और अंग्रेजी में बिल्कुल स्पष्ट है। लेकिन आपको पता है, ये आधार कार्ड को आयकर विभाग की मान्यता ही नहीं है। सच बताऊं मैं अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट की कार्यप्रणाली और आयकर विभाग की इतनी जटिल प्रकिया से हार गया हूं। अब मुझे एक  नया रास्ता बताया गया है। कहा जा रहा है कोई राजपत्रित अधिकारी आयकर विभाग के एक निर्धारित प्रपत्र पर ये लिखकर दे कि हां मैं Mahendra Kumar Srivastava को जानता हूं। इनके नाम के आगे Srivastava ही होना चाहिए। इस पर वो अधिकारी हस्ताक्षर करने के साथ ही अपने आई कार्ड का फोटो स्टेट भी देगा। बताइये मित्रों ! अब भला कोई अधिकारी मेरे लिए ऐसा क्यों करेगा ? लेकिन आप इसमें मेरी मदद करें तो मैं कृतज्ञ रहूंगा। अगर हमारे बीच कोई आयकर अधिकारी है तो प्लीज वो मेरी दिक्कत पर गौर फरमाएं।